मेरा मैं खुद ही परिचय हूँ दुनिया जिसकी आभारी है
मैं सर्वश्रेष्ठ कृति ईश्वर की, प्रकृति जिस पर
बलिहारी है
मैं पुरुष की मां के रूप में हूँ, बेटी या बहन स्वरूपा
हूँ
मैं ही काली मैं ही चंडी, मैं सौम्य रूप में दुर्गा
हूँ
मैं त्याग की मूरत भी हूँ जो, दुनिया को रक्त से
सींचे है
मैं वो संयम की परिभाषा जिसके आगे सब फीके हैं
मैं अर्पण हो जाऊं तो फिर सावित्री हूँ अनुसुइया हूँ
मैं गर्वित भूषित हो जाऊं तो विद्योत्मा हूँ गार्गी हूँ
मैं शापित हो जाऊं तो फिर दुनिया का अंत निकट समझो
मैं अपमानित हो जाऊं तो संकट निकट विकट समझो
मैं स्नेह रूप में विश्व की जननी बनकर उसे पालती हूँ
मैं ही सौन्दर्य स्वरुप में जग के होने का मकसद बन जाती
हूँ
माना कि पुरुष पिता है और वो नहीं तो जीवन रूखा है
पर स्त्री जो मां पुरुष की है जीवन उसकी खींची रेखा
है
पूजो नहीं मुझे दुनिया, मैं नारी हूँ नारी रहने दो
है गंगा सा अस्तित्व मेरा, बस अविरल मुझको बहने दो