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Friday, 17 November 2017

हो तो कुछ भी सकता है



ज़रूरी नहीं कि रोने को हर बार कोई कन्धा ही हो 
अपने घुटनों में टूटकर बिखर जाना भी दिल को हल्का करता है 
कोई हाथ थामकर आपको दिलासा दे, ये हमेशा तो नहीं होगा 
खुद संभलकर लड़खड़ाते कदम उठाने से भी रास्ता कट ही जाता है 
वादा किया जो ताउम्र फिक्र करने का उसने, सपना रहा हो शायद 
उसकी मोहब्बत पर यूं यक़ीन रखना एहसासों का धोखा भी हो सकता है 
ज़माने में मोहब्बत के दस्तूर -दर्द तो उसे भी मालूम थे ना 
फिर गुनहगार इस बेपनाह चाहत को वो कैसे बता सकता है... 

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