बारिश तो उस बरस भी हुई थी,
जब मेरे हाथों में तूने अंजलि भर-भर कर पानी डाला था,
बारिश आज भी हुई है और हर तरफ पानी है,
लेकिन मेरी हथेलियां सूखी पड़ी हैं
इन बूंदों से खेलना तो तुमने ही सिखाया
फिर अकेले कैसे खेलूं, ये क्यों नहीं बताया
हवाओं के चलने के साथ ही कॉफ़ी के कप पर तुम्हारा मचल जाना
मेरे जेहन में भी उसकी तलब जगाया करता था
अब भी मौसम सुहाना होता है,
लेकिन कॉफी की तलब तुम्हारी यादों में कहीं खो जाती है
अब बेसन को देखते ही पकौड़े खाने को दिल नहीं होता
अब गुलमोहर के फूलों से ख़ुशी नहीं होती,
शायद अब इनकी ज़रूरत नहीं रही
मन वीरान हो गया है,
जैसे रूह तुम्हारे न होने का कभी न ख़त्म होने वाला मातम मना रही हो
आजकल ज़िद नहीं किया करती हूं,
डर है कौन पूरा करेगा उसे
जैसे मां की गोद छिन जाने पर कोई बच्चा अचानक बड़ा हो गया है