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Friday 17 November 2017

बारिश तो उस बरस भी हुई थी



बारिश तो उस बरस भी हुई थी, 
जब मेरे हाथों में तूने अंजलि भर-भर कर पानी डाला था, 
बारिश आज भी हुई है और हर तरफ पानी है, 
लेकिन मेरी हथेलियां सूखी पड़ी हैं 

इन बूंदों से खेलना तो तुमने ही सिखाया 
फिर अकेले कैसे खेलूं, ये क्यों नहीं बताया 
हवाओं के चलने के साथ ही कॉफ़ी के कप पर तुम्हारा मचल जाना 
मेरे जेहन में भी उसकी तलब जगाया करता था 

अब भी मौसम सुहाना होता है, 
लेकिन कॉफी की तलब तुम्हारी यादों में कहीं खो जाती है 
अब बेसन को देखते ही पकौड़े खाने को दिल नहीं होता 

अब गुलमोहर के फूलों से ख़ुशी नहीं होती, 
शायद अब इनकी ज़रूरत नहीं रही 
मन वीरान हो गया है, 
जैसे रूह तुम्हारे न होने का कभी न ख़त्म होने वाला मातम मना रही हो 

आजकल ज़िद नहीं किया करती हूं, 
डर है कौन पूरा करेगा उसे 
जैसे मां की गोद छिन जाने पर कोई बच्चा अचानक बड़ा हो गया है 

हो तो कुछ भी सकता है



ज़रूरी नहीं कि रोने को हर बार कोई कन्धा ही हो 
अपने घुटनों में टूटकर बिखर जाना भी दिल को हल्का करता है 
कोई हाथ थामकर आपको दिलासा दे, ये हमेशा तो नहीं होगा 
खुद संभलकर लड़खड़ाते कदम उठाने से भी रास्ता कट ही जाता है 
वादा किया जो ताउम्र फिक्र करने का उसने, सपना रहा हो शायद 
उसकी मोहब्बत पर यूं यक़ीन रखना एहसासों का धोखा भी हो सकता है 
ज़माने में मोहब्बत के दस्तूर -दर्द तो उसे भी मालूम थे ना 
फिर गुनहगार इस बेपनाह चाहत को वो कैसे बता सकता है... 

...ये तुमको भी पता होगा



किसी को पाकर खोना क्या होता है 
किसी का होकर न होना क्या होता है 
हंस-हंसकर रोना क्या होता है... 
ये तुमको भी पता होगा
जी-जीकर मरना क्या होता है 
न चाहकर कुछ करना क्या होता है 
दर्द रह-रहकर उभरना क्या होता है 
ये तुमको भी पता होगा
अपने हाथों कोई आग नहीं लगाता 
पर आग में जलना क्या होता है 
गिर-गिरकर सम्भलना क्या होता है 
ये तुमको भी पता होगा
ज़िंदगी फूलों की नहीं भाती किसको 
काँटों से गुज़रना क्या होता है 
हमें दिलासा देने वालों 
दिल पर पत्थर रखना क्या होता है 
ये तुमको भी पता होगा
... पर मेरे कहने से क्या होगा 

तुम होकर भी नहीं हो


मैं जानती हूँ इन रास्तों पर तुम्हारा होना तो दूर 
निशाँ मिलना भी मुश्किल है 
पर तकती रहती हूँ एकटक उसी तरफ 
शायद तुम आ जाओगे इस भ्रम में हूँ
ये खुशफहमी नहीं हो सकती 
क्योंकि सत्य जानती हूँ मैं 
तुम किसी अलग राह पर निकल पड़े हो 
पर ये मेरी इबादत है जो ईश्वर की तरह तुम पर यकीन करती है
सब जानते हैं कि ईश्वर मिलते नहीं 
पर लोग उनकी राह देखा करते हैं 
अपनी पीड़ा को उनसे कहकर जी लिया करते हैं 
वो पीड़ा कम नहीं होती, न ही ईश्वर अपनी गोद में बिठाकर 
हमें लाड़ करता है, न ज़िद पूरी करता है
बस उस पर भरोसा ही हमें सम्बल देता है कि कोई तो अपना है 
उसी तरह मैं जानती हूँ तुम होकर भी नहीं हो 
बस तुम समझ लेना कि तुम ईश्वर को कैसे-कैसे याद करते हो 
कैसे-कैसे उसकी राह तकते हो, उसके होने से ही कितना सुकून मिलता है 
शायद इस दिल के निश्छल प्रेम को समझ जाओगे