Sunday, 27 October 2013
Thursday, 26 September 2013
Wednesday, 25 September 2013
रुसवाइयां
क्यों चाहकर भी तेरी याद न भुला पाऊं।
दिल के जख्मों को ठहाकों में न छुपा पाऊं।
आंसू बन के तेरी यादें बरसती जाती हैं,
तेरी जैसी संगदिल क्यों न बन पाऊं ।
अपना जी भर के बिजलियां तूं गिरा ले मुझ पे,
इससे पहले कि मैं लंबे सफर निकल जाऊं।
मेरी सांसों ने भी तो मुझसे बेवफाई की,
तेरी चाहत की तरह कब पता बिखर जाऊं।
अभी सोचा था कि सूरत तेरी न देखूंगी,
डर क्यों लगता है देखे बिना न मर जाऊं।
रेत के महलों में पलते ये सपने मेरे क्यों,
एक अदनी सी लहर आये और मैं बह जाऊं।
दिल के जख्मों को ठहाकों में न छुपा पाऊं।

तेरी जैसी संगदिल क्यों न बन पाऊं ।
अपना जी भर के बिजलियां तूं गिरा ले मुझ पे,
इससे पहले कि मैं लंबे सफर निकल जाऊं।
मेरी सांसों ने भी तो मुझसे बेवफाई की,
तेरी चाहत की तरह कब पता बिखर जाऊं।
अभी सोचा था कि सूरत तेरी न देखूंगी,
डर क्यों लगता है देखे बिना न मर जाऊं।
रेत के महलों में पलते ये सपने मेरे क्यों,
एक अदनी सी लहर आये और मैं बह जाऊं।
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