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Thursday, 26 September 2013

वेदना





मन में आह उपजाती,वेदना का कहर
अविरल उच्छवासों में
समेट कर छुपाती हूं।

अटकती सांसें
आत्मा को चीरकर,
आंसुओं के दामन में 
लुढ़क जाती हैं।

पीड़ा की कठोरता
 मुझमें  टूटकर तब,
भावनाओं को लिये 
आंखों में पिघल जाती है।

उलझनों की लहरों को
जीवन के आह्लादों पर,
ठोकरें मारने से 
कहां रोक पाती हूं। 

Wednesday, 25 September 2013

रुसवाइयां

क्यों चाहकर भी तेरी याद न भुला पाऊं।
दिल के जख्मों को ठहाकों में न छुपा पाऊं।
आंसू बन के तेरी यादें बरसती जाती हैं,
तेरी जैसी संगदिल क्यों न बन पाऊं ।
अपना जी भर के बिजलियां तूं गिरा ले मुझ पे,
इससे पहले कि मैं लंबे सफर निकल जाऊं।
मेरी सांसों ने भी तो मुझसे बेवफाई की,
तेरी चाहत की तरह कब पता बिखर जाऊं।
अभी सोचा था कि सूरत तेरी न देखूंगी,
डर क्यों लगता है देखे बिना न मर जाऊं।
रेत के महलों में पलते ये सपने मेरे क्यों,
 एक अदनी सी लहर आये और मैं बह जाऊं।