क्यों चाहकर भी तेरी याद न भुला पाऊं।
दिल के जख्मों को ठहाकों में न छुपा पाऊं।
आंसू बन के तेरी यादें बरसती जाती हैं,
तेरी जैसी संगदिल क्यों न बन पाऊं ।
अपना जी भर के बिजलियां तूं गिरा ले मुझ पे,
इससे पहले कि मैं लंबे सफर निकल जाऊं।
मेरी सांसों ने भी तो मुझसे बेवफाई की,
तेरी चाहत की तरह कब पता बिखर जाऊं।
अभी सोचा था कि सूरत तेरी न देखूंगी,
डर क्यों लगता है देखे बिना न मर जाऊं।
रेत के महलों में पलते ये सपने मेरे क्यों,
एक अदनी सी लहर आये और मैं बह जाऊं।
दिल के जख्मों को ठहाकों में न छुपा पाऊं।
आंसू बन के तेरी यादें बरसती जाती हैं,
तेरी जैसी संगदिल क्यों न बन पाऊं ।
अपना जी भर के बिजलियां तूं गिरा ले मुझ पे,
इससे पहले कि मैं लंबे सफर निकल जाऊं।
मेरी सांसों ने भी तो मुझसे बेवफाई की,
तेरी चाहत की तरह कब पता बिखर जाऊं।
अभी सोचा था कि सूरत तेरी न देखूंगी,
डर क्यों लगता है देखे बिना न मर जाऊं।
रेत के महलों में पलते ये सपने मेरे क्यों,
एक अदनी सी लहर आये और मैं बह जाऊं।
tum sath na hoke bhi kyu sath hone ka eshas dete ho
ReplyDeletenice..............
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
Deleteआभार आपका।
जीवन भी तो समग्र तभी बनता हैं जब अनुभूतियाँ समग्र हो जाती हैं। सुन्दर!
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