तेरे साथ हमकदम थे, तेरे लिए सनम थे
तुझसे थी मेरी हस्ती, तेरे बिना ना हम थे
तेरे साथ ही चले हम, तेरे लिए ठहर गए
दिल में कसक लिए हम बेसाख्ता बिखर गए
कहते थे तेरा जाना जाएगा, जाएगा भूल दिल ये
तूं दूर हो भले ही, तेरी याद में संवर गए
इश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
तुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए
तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
प्रेम की पीड़ा एवं बिछोह की वेदना का संक्षेप में वर्णन ! बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार देवेंन जी।
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteदर्द कहीं आँखों में नमीं बनकर न छाए .....इसलिए......
जो दिल में है उसे आँखों के हवाले नहीं करना
खुद को कभी ख्वाबों के हवाले नहीं करना
अब अपने ही ठिकाने पर रहता नहीं कोई
पैगाम परिंदों के हवाले नहीं करना
वाह।बहुत खूब।
Deleteधन्यवाद्
तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
ReplyDeleteतेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
क्या बात है, वाह .... बेहतरीन
प्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना , स्मिता जी धन्यवाद !
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सादर आभार
Deleteसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 4 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteआभारी हु आशीष जी
Deleteविछोह के दर्द से बोझिल हृदयस्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteविनम्र आभार आपका
Deleteलाजवाब !
ReplyDeleteधन्यवाद् यश जी
Deleteइश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
ReplyDeleteतुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
धन्यवाद् अनुषा
Deleteतेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
ReplyDeleteतेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
बहत सुन्दर |
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
नई पोस्ट माँ है धरती !
सादर आभार
DeleteSaharhniya.
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteबहुत अच्छी पंक्तियां हैं।
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteसमय अंततः अपने स्वजन, मित्र और हितैषियों से दूर करते हुए आखिर में स्वयं से भी दूर कर देता है. कैफ़ी आज़मी ने ये गीत लिखा था....देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी.... इन्ही दो पंक्तियों में सारा सार लिख दिया.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteतेरे साथ हमकदम थे, तेरे लिए सनम थे
ReplyDeleteतुझसे थी मेरी हस्ती, तेरे बिना ना हम थे ..
प्रेम में अक्सर ये होना तय है ... खुद की हस्ती भी गम हो जाती है ... सनम से ही जिंदगी हो जाती है ...
सत्य कहा आपने। आभार
Deleteदर्द ..आह ..तड़प ...अति सुंदर
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteyahi sacchayi hai jeevan ki. swayam ko sambhaal lena hi behtar hai. sunderta se bhaavon ko shabd diye hain.
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteदर्द है कि जाता नहीं...
ReplyDeleteसत्य कहा आपने। आभार
Deleteशानदार
ReplyDeleteआभार
Deleteआपके पोस्ट का लिंक
Deletehttps://www.facebook.com/groups/605497046235414/ यहाँ भी है .... आप भी आयें
badhiya hai
ReplyDeleteधन्यवाद् राहुल जी
Deleteतेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
ReplyDeleteतेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु सर
Deleteखूबसूरत नज़्म स्मिता,,,
ReplyDeleteधन्यवाद् अरमान जी।
Deleteबढ़िया रचना ! मंगलकामनाएं आपकी कलम को
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद् आपको
Deleteबहुत ही लाज़वाब रचना स्मिता जी। .
ReplyDelete(पैग़ाम ये हमारा कोई तो पहुँचाए तुम तक
आँखें खुली रहेंगी इंतज़ार में मरते दम तक)
वाह।बहुत खूब।
Deleteधन्यवाद्
बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....
बहुत खूब।
Deleteधन्यवाद्
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक सम्पूर्ण मंच प्रदान करता है.
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प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteसुन्दर रचना !!
ReplyDeleteधन्यवाद्
Delete
ReplyDeleteतेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए------
बहुत सुन्दर रचना
मन को छूती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है --मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आजादी ------ ???
धन्यवाद्
Deleteतेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
ReplyDeleteतेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
सुन्दर रचना स्मिता जी
प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteतेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
ReplyDeleteतेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए ।
वाह बहुत बढ़िया गजल।
प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteखूबशूरत अल्फाज़ और बेहद खूबशूरत एहसास से भरी दस्ताने मोहब्बत से रूबरू कराती बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteतेरे लिए ही जिन्दा थे , तेरे लिए ही मर गए !
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास !
प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteइश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
ReplyDeleteतुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए.....बहुत सुन्दर...
प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Deleteखूबसूरत
ReplyDeleteआभारी हु
Deleteइश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
ReplyDeleteतुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए
.............बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
आभारी हु
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट खामोश भावनाओं की ऊपज पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
ReplyDeleteआभारी हु
Deleteआपकी संवेदनशील रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभारी हु
Delete