www.hamarivani.com

Sunday 3 August 2014

तेरे लिए




तेरे साथ हमकदम थे, तेरे लिए सनम थे
तुझसे थी मेरी हस्ती, तेरे बिना ना हम थे

तेरे साथ ही चले हम, तेरे लिए ठहर गए
दिल में कसक लिए हम बेसाख्ता बिखर गए

कहते थे तेरा जाना जाएगा, जाएगा भूल दिल ये
तूं दूर हो भले ही, तेरी याद में संवर गए

इश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
तुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए

तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए



65 comments:

  1. प्रेम की पीड़ा एवं बिछोह की वेदना का संक्षेप में वर्णन ! बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार देवेंन जी।

      Delete
  2. बहुत सुंदर रचना.
    दर्द कहीं आँखों में नमीं बनकर न छाए .....इसलिए......
    जो दिल में है उसे आँखों के हवाले नहीं करना
    खुद को कभी ख्वाबों के हवाले नहीं करना
    अब अपने ही ठिकाने पर रहता नहीं कोई
    पैगाम परिंदों के हवाले नहीं करना

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह।बहुत खूब।
      धन्यवाद्

      Delete
  3. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
    क्‍या बात है, वाह .... बेहतरीन

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभार

      Delete
  4. विछोह के दर्द से बोझिल हृदयस्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आपका

      Delete
  5. इश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
    तुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए
    बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद् अनुषा

      Delete
  6. आभारी हु आशीष जी

    ReplyDelete
  7. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
    बहत सुन्दर |
    : महादेव का कोप है या कुछ और ....?
    नई पोस्ट माँ है धरती !

    ReplyDelete
  8. Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  9. बहुत अच्छी पंक्तियां हैं।

    ReplyDelete
  10. समय अंततः अपने स्वजन, मित्र और हितैषियों से दूर करते हुए आखिर में स्वयं से भी दूर कर देता है. कैफ़ी आज़मी ने ये गीत लिखा था....देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी.... इन्ही दो पंक्तियों में सारा सार लिख दिया.

    सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  11. तेरे साथ हमकदम थे, तेरे लिए सनम थे
    तुझसे थी मेरी हस्ती, तेरे बिना ना हम थे ..
    प्रेम में अक्सर ये होना तय है ... खुद की हस्ती भी गम हो जाती है ... सनम से ही जिंदगी हो जाती है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य कहा आपने। आभार

      Delete
  12. दर्द ..आह ..तड़प ...अति सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  13. yahi sacchayi hai jeevan ki. swayam ko sambhaal lena hi behtar hai. sunderta se bhaavon ko shabd diye hain.

    ReplyDelete
  14. दर्द है कि जाता नहीं...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य कहा आपने। आभार

      Delete
  15. Replies
    1. आपके पोस्ट का लिंक
      https://www.facebook.com/groups/605497046235414/ यहाँ भी है .... आप भी आयें

      Delete
  16. Replies
    1. धन्यवाद् राहुल जी

      Delete
  17. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
    ...वाह...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु सर

      Delete
  18. खूबसूरत नज़्म स्मिता,,,

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद् अरमान जी।

      Delete
  19. बढ़िया रचना ! मंगलकामनाएं आपकी कलम को

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत धन्यवाद् आपको

      Delete
  20. बहुत ही लाज़वाब रचना स्मिता जी। .


    (पैग़ाम ये हमारा कोई तो पहुँचाए तुम तक
    आँखें खुली रहेंगी इंतज़ार में मरते दम तक)

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह।बहुत खूब।
      धन्यवाद्

      Delete
  21. बहुत खूब।
    धन्यवाद्

    ReplyDelete
  22. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

    ReplyDelete

  23. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए------
    बहुत सुन्दर रचना
    मन को छूती हुई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    आग्रह है --मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    आजादी ------ ???

    ReplyDelete
  24. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए
    सुन्दर रचना स्मिता जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  25. तेरा अक्स तैरता है, आंखों में दर्द बनकर
    तेरे लिए थे जिंदा, तेरे लिए ही मर गए ।
    वाह बहुत बढ़िया गजल।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  26. खूबशूरत अल्फाज़ और बेहद खूबशूरत एहसास से भरी दस्ताने मोहब्बत से रूबरू कराती बेहतरीन गज़ल

    ReplyDelete
  27. तेरे लिए ही जिन्दा थे , तेरे लिए ही मर गए !
    खूबसूरत एहसास !

    ReplyDelete
  28. इश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
    तुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए.....बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete
  29. इश्क का गुबार-ए-ख्वाब था, कल था अभी नहीं है
    तुम भी कहीं थे टूटे, हम भी कहीं बिखर गए
    .............बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति !!

    ReplyDelete
  30. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट खामोश भावनाओं की ऊपज पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।

    ReplyDelete
  31. आपकी संवेदनशील रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभारी हु

      Delete