बरगद का पेड़
आज गांव का बड़ा बरगद का वृक्ष
सूना है, उदास सा अकेला
कल तक जो उसकी गोद में
खेला करते थे, वे बच्चे
आज बड़े हो गये हैं
धूल भरे उलझे बालों की
चोटियां गूथती वो गुड़िया जैसी थी
और उसे मारता, दुलारता वो नन्हा
पर शैतान सा बच्चा
परदेश गए थे जब दोनों तो यहीं पर
अपने दोस्तों से मिलकर
फफक उठे थे सारे और फिर
वापस आने का वादा कर गए
उनकी राह देखते आज बरगद का पेड़
अपनी लटें बिछाए बैठा है पर
उसकी जवानी के दिनों के बच्चे
जवान हो गए है, फिक्र में खो गए हैं
अब उनकी दुनिया
बहुत बड़ी हो चुकी है
शायद बरगद से भी बड़ी जहां,
खेलकर वे बड़े हुए थे
और जर्जर होता वृक्ष इस आस में
किसी दिन ढह जाएगा कि
शायद वापस आकर कभी परदेश से
यहां तक पहुंचेंगे उसकी आंखों के तारे
thank u
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के डायरेक्ट दिल से :)
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteज़रूर आएंगे वापस, स्नेह का सम्बन्ध जो है, वो खींच ही लाता है एक दिन!
ReplyDeleteसत्य कह रहे हैं आप। आभार
Deleteसादर आभार यश जी
ReplyDeleteअवांछित पलायन की व्यथा बखूबी शब्दों में उतरी है.
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आपका आभार निहार जी
Deleteबहुत बढ़िया ...मुझे भी अपने गावं का बरगद का पेड़ बहुत याद आता है
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteपुरानी यादों में ले जाती सुन्दर कविता!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Delete