www.hamarivani.com

Saturday, 3 May 2014

बरगद का पेड़


आज गांव का बड़ा बरगद का वृक्ष

सूना है, उदास सा अकेला

कल तक जो उसकी गोद में

खेला करते थे, वे बच्चे

आज बड़े हो गये हैं


धूल भरे उलझे बालों की 

चोटियां गूथती वो गुड़िया जैसी थी

और उसे मारता, दुलारता वो नन्हा 

पर शैतान सा बच्चा 


परदेश गए थे जब दोनों तो यहीं पर 

अपने दोस्तों से मिलकर 

फफक उठे थे सारे और फिर

वापस आने का वादा कर गए


उनकी राह देखते आज बरगद का पेड़

अपनी लटें बिछाए बैठा है पर

उसकी जवानी के दिनों के बच्चे 

जवान हो गए है, फिक्र में खो गए हैं


अब उनकी दुनिया 

बहुत बड़ी हो चुकी है

शायद बरगद से भी बड़ी जहां,

खेलकर वे बड़े हुए थे


और जर्जर होता वृक्ष इस आस में

किसी दिन ढह जाएगा कि 

शायद वापस आकर कभी परदेश से

 यहां तक पहुंचेंगे उसकी आंखों के तारे







12 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के डायरेक्ट दिल से :)

    ReplyDelete
  2. ज़रूर आएंगे वापस, स्नेह का सम्बन्ध जो है, वो खींच ही लाता है एक दिन!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य कह रहे हैं आप। आभार

      Delete
  3. सादर आभार यश जी

    ReplyDelete
  4. अवांछित पलायन की व्यथा बखूबी शब्दों में उतरी है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार निहार जी

      Delete
  5. बहुत बढ़िया ...मुझे भी अपने गावं का बरगद का पेड़ बहुत याद आता है

    ReplyDelete
  6. पुरानी यादों में ले जाती सुन्दर कविता!

    ReplyDelete