वह अल्हड सी लड़की अब बहू हो चुकी है
नर्म हाथों से वह रोटियां उठा लेती है
जिसे चिमटे से छूने में भी डरती थी
बाबा की राजकुमारी
अब पति के इशारों पर चलती है
चावल से कंकड़ों को बीनती
सिल-बट्टे पर मसाले पीसती
माथे पर आए पसीने को पोंछती
मुस्कुराती है हर आदेश पर
किसी का खाना किसी का बिछौना
किसी का पानी किसी का दाना लिए
दिन-रात घर में डोलती
आमदनी और खर्चे को जोड़ती
हर पल फुदकती, चहकती वो लड़की
सहनशील, संस्कारी बन गई है
बोलना मना है उसे किसी के बीच
अपनी राय लिए सो जाती है हर रात
सुबह शाम तो होती है रोज पर
रोटियों को गोल-गोल घुमाते
बच्चों के टिफिन लगाते
झूठे बर्तन मांजते निकल जाती है
वह हंसती है क्योंकि
उसके पति और बच्चे खुश हैं
उसकी खुशी के मायने बदल जो चुके हैं
वह अपने लिए नहीं उनके लिए खुश होती है
वह भूल चुकी है कि चारदीवारी से बाहर
दुनिया कैसी दिखती है, सुबह कैसी लगती है
वह भूल चुकी है अपना अस्तित्व, अपनी पहचान
उसे नहीं कहलाना बाबा की गुड़िया या मां की बिटिया
वह अल्हड़ सी लड़की अब बहू हो चुकी है।
Heart touching
ReplyDeletethanks dear
ReplyDeleteWowwwww Smita. Ye tmne likha hai???? Gr8 job if it is so.:-)
ReplyDeleteWowwwww Smita. Ye tmne likha hai???? Gr8 job if it is so.:-)
ReplyDeletethank u so mauch armaan ji..par kya ap btayege ki ap kaun hai??
ReplyDeleteअच्छी बन पडी है यह कविता
ReplyDeleteधन्यवाद् सर।। छोटा सा प्रयास किया है। जो लिखा उसे शेयर करने की इच्छा थी।।
Deletevery gud dear
ReplyDeletelove it
थैंक यू दोस्त।
ReplyDeleteye kewar humare bharat ki mahila kar sakte hai jo apne liye na jikar apne pariwar ke liye jeti hai or unke kushi me khush hote hai.
ReplyDeleteBahut Khaab....................
bilkul sahi kaha radhika...thanks for ur nice comment
ReplyDeleteदिल से लिखी ..सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
आभार। जी जरुर आपके ब्लॉग को देखेंगे।
Deleteआह!
ReplyDeleteआभार
DeleteIse padh k lag raha hai aane waale dino me hame bhi aise hi sab karna padega is aladh ladki ki tarah. Bahut khooob....:)
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