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Saturday, 3 May 2014

मेरी मां


मेरे बचपन के गीतों में
तुम लोरी और कहानी में
तुम मुझमें हर पल हंसती हो
मैं तेरी जैसी ही दिखती हूं

वो दिन जब तुम मुझको ओ मां
गलती पर डांटा करती थी
फिर चुप जाकर कमरे में उस
खुद ही रोया करती थी मां

तुम पहला अक्षर जीवन का 
तुम मेरे जीवन की गति हो
खुली आंखों का सुंदर स्वप्न 
दुनिया में मेरी शीतल बयार

मैं तेरी छाया हूं देखो
तेरे जैसी ही चलती हूं
तेरे जैसी ही भावुक हूं
तुम जैसी ही रो देती हूं

अपने आंचल की ओट में मां
हर मुश्किल से हमें बचाया तुमने
औरत होने का दंश झेलकर
अभागन कहलाकर

मेरी आजादियों पाबंदियों 
और दहलीजों में तुम हो पर मां,
 नहीं पूजूंगी तुम्हारी तरह जीवन भर
किसी पत्थर दिल को अपना राम बनाकर




13 comments:

  1. कुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव

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  2. बहुत खूब........... सीधे दिल को छूती ये लाइनें। धन्यवाद पढ़वाने के लिए...... कृपया ब्लॉग सेतु पर जरूर जुड़िये "http://blogsetu.com/

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    1. सादर आभार ब्लॉग पर पधारने के लिए। मैंने आपके ब्लॉग को पढ़ा। आपका ब्लॉग सराहनीय है।

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  3. सच है, पत्थर के राम से कहीं अधिक आशीष तो माँ के चरणों में है! माँ और उसकी तपस्या सर्वदा वंदनीय है.

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    1. जी बिलकुल भगवन साक्षात माता पिता ही हैं सादर आभार आपका

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