मेरे बचपन के गीतों में
तुम लोरी और कहानी में
तुम मुझमें हर पल हंसती हो
मैं तेरी जैसी ही दिखती हूं
वो दिन जब तुम मुझको ओ मां
गलती पर डांटा करती थी
फिर चुप जाकर कमरे में उस
खुद ही रोया करती थी मां
तुम पहला अक्षर जीवन का
तुम मेरे जीवन की गति हो
खुली आंखों का सुंदर स्वप्न
दुनिया में मेरी शीतल बयार
मैं तेरी छाया हूं देखो
तेरे जैसी ही चलती हूं
तेरे जैसी ही भावुक हूं
तुम जैसी ही रो देती हूं
अपने आंचल की ओट में मां
हर मुश्किल से हमें बचाया तुमने
औरत होने का दंश झेलकर
अभागन कहलाकर
मेरी आजादियों पाबंदियों
और दहलीजों में तुम हो पर मां,
नहीं पूजूंगी तुम्हारी तरह जीवन भर
किसी पत्थर दिल को अपना राम बनाकर
Nice....
ReplyDeleteNice....
ReplyDeletethank u amit
ReplyDeletesupberp......lines
ReplyDeletethank u
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeletethank u radhika
ReplyDeleteकुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteबहुत खूब........... सीधे दिल को छूती ये लाइनें। धन्यवाद पढ़वाने के लिए...... कृपया ब्लॉग सेतु पर जरूर जुड़िये "http://blogsetu.com/
ReplyDeleteसादर आभार ब्लॉग पर पधारने के लिए। मैंने आपके ब्लॉग को पढ़ा। आपका ब्लॉग सराहनीय है।
Deleteसच है, पत्थर के राम से कहीं अधिक आशीष तो माँ के चरणों में है! माँ और उसकी तपस्या सर्वदा वंदनीय है.
ReplyDeleteजी बिलकुल भगवन साक्षात माता पिता ही हैं सादर आभार आपका
Delete