मां अतुल्य है जीवन की साक्षी है
लेकिन पिता बिना मां की परिभाषा कहां बन पाती
मां छांव तो पिता वो बरगद का पेड़ हैं
जिसकी छत्रछाया में मां हमें पालती है
मेरे पिता, बचपन में आपकी फटकार के संग
मैंने आपका दिल धड़कते महसूस किया है
पर मां की डांट के बाद आपका प्यार
मन के कोनों में प्रकाश भरता रहा है
आप हैंं तो जीवन सुंदरतम है
आपके होने से ही आंखों में इतने रंग हैं
आपका होना ही मेरा खुद पर विश्वास है
मेरे जीवन के कल्पतरु हैं आप पिता
जीवन के तमाम विषाद पीकर
हर दर्द को अपने सीने में समेटकर
आपने दी हर मुश्किल को चुनौती
कि आज मेरी सफलताएं आपसे ही हैं
मेरी उपलब्धियों पर मुस्कुराते आप
मेरी विफलताओं पर अब कुछ नहीं कहते
नहीं, इतना बड़ा तो नहीं होना था मुझे
आप ही मेरे नायक हो, कुछ सवाल तो किया करो
आपका कुनबा बढ़ रहा है लेकिन
इस वटवृक्ष की जड़ें आप ही हो
कि आपकी गोद में सिर रखकर
अब भी वक्त बिताना अच्छा लगता है,
जी चाहता है तोड़ दूं दीवार घड़ी की सुइयां
कि आप बूढ़े नहीं हो सकते कभी
आपकी निरंतरता मेरी रगों में है
मैं दुनिया में आपका ही प्रतिरूप हूं,
आपके होने से ही मैं हूं पिता
आपका कभी न होना कल्पना से भी परे है
इन आंखों में सपने भरने वाले पिता
मैंने आपके बिना दुनिया सोची नहीं अब तक
मेरे मन के जीवट योद्धा
जागो कि तुम ढले नहीं, बस थक गए हो
मैं हूं तुम्हारी आत्मशक्ति देखो मुझे
तुम्हारी आत्मा का अंश हूं, मुझमें जवान होते पिता
ब्लॉग जगत मे आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट।
सादर
जी धन्यवाद् आपका।। अवश्य जोड़ लेगे फॉलो का विकल्प।
ReplyDeleteस्मिता बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ ..... यशवंत जी ने जब ये पोस्ट मुझसे शेयर की .... तभी से ....यानी सुबह से खोल रखी थी परन्तु पूर्ण रुपें पढ़ अभी पाई हूँ ..... पिता के लिए भाव अच्छे हैं ...मुझमें जवान होते पिता ......वटवृक्ष की जड़ें ......सुंदर उपमाएं ...बधाई .....धन्यवाद @यशवंत जी
ReplyDeleteआपका भी बहुत बहुत धन्यवाद मैम .....जब भी मेरे सामने कोई नया ब्लॉग आता है तो मेरी कोशिश उसे और लोगों तक पहुंचाने की होती है....आपने यह ब्लॉग देखा ....मेरी कोशिश सफल हुई।
Deleteसादर
आप दोनों का मेरा सादर धन्यवाद्। मेरी अन्य रचनाये भी अवश्य पढ़ें इस ब्लॉग की। हाल ही में ब्लॉग पर सक्रिय हुई हु। आपके सहयोग की आकांक्षी रहूंगी।
ReplyDeleteसादर
आपकी अन्य रचनाएँ भी ज़रूर पढ़ूँगा।
Deleteब्लॉग पर आपकी सक्रियता जारी रहे।
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कल 11/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
आपका आभार। मेरी रचना को नयी पुराणी हलचल पर जगह देने के लिए। आगे भी ब्लॉग पर सक्रियता बनी रहेगी।
ReplyDeleteसादर।
बहुत भावपूर्ण और दिल को छूती अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआभार आपका।
ReplyDeleteसादर।
शुभ प्रभात
ReplyDeleteएक अच्छी रचना से शुरुवात
स्वागतम्
चरैवेति चरैवेति
सादर
सादर
बहुत सुन्दर लिखा है आपने |कविता बहुत अच्छी है |
ReplyDeletedhanyawad aap sabhi ko
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण समर्पण है एक सनातन बेटी का एक सनातन पिता के प्रति ! बहुत सुंदर रचना ! हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपको बहुत धन्यवाद्। मेरी रचना को पढने व सराहने के लिए।
Deleteसादर।
दिल को छू गई आपकी कविता...बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद् आपको पारुल जी।
ReplyDeleteएकदम सटीक चित्र खींचा है सार्थक शब्द लिए हैं.
ReplyDeleteधन्यवाद आपका संजय जी
ReplyDeletesundar prastuti!
ReplyDeleteसादर आभार प्रभात जी
Deleteपिता को समर्पित इस रचना को पढ़कर एक बेटी के प्यार को शिद्दत से महसूस कर रही हूँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर आभार आपका
Deleteविनम्र आभार
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ! अच्छा लगा देखकर.... माँ पर तो सभी लिखते हैं. पर पिता की अहमियत भी कम नही होती ! बधाई ! :)
ReplyDeleteसत्य कहा आपने प्रीती जी. पिता की भी जीवन में अद्भुत और अनिवार्य अहमियत है
Deleteप्रतिक्रिया के लिए आभार