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Monday, 14 July 2014

स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो



स्वाहा तुम्हीं स्वधा तुम हो
तुम कल्याणी सृष्टि की
बन मोहिनी जग को रचती 
स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो

एक बदन एक ही जीवन 
पर इतने रूपों में जीवित हो
सबसे पावन प्रेम तुम्हारा
स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो

अन्नपूर्णा इस जग ही 
तुम ही क्षुधा मिटाती हो
प्रेम भरा हर रूप तुम्हारा
स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो

पावन गंगा सी निर्मल हो
जग को सिंचित, पोषित करती
तुम न हो तो जग न होगा
स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो

21 comments:

  1. तुम न हो तो जग न होगा
    स्त्री तुम सचमुच अद्भुत हो
    बहुत सुन्दर रचना

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    1. धन्यवाद् अनुषा।

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    1. प्रतिक्रिया के लिए आभार राजीव जी।

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  3. बहुत खूब स्मिता जी


    सादर

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    1. धन्यवाद यश जी।
      सादर।

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  4. Stri to sach me adbhut hai.....aapne adbhut hone ki sunder prastuti ki hai Smita ji....bahut lajawaab.....

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    1. धन्यवाद् परी जी।

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  5. स्त्री हर रूप में शक्ति है ... माननीय है ...
    नारी को लेकर लिखी लाजवाब रचना ...

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    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार दिगंबर जी।
      सादर

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  6. अछोर ममत्व और स्नेह की डोर
    होती है मां.. यानी नारी

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    1. सत्य कहा आपने।
      आभार

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  7. विनम्र आभार यश जी

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  8. अद्भुत रचना स्मिता,,,

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    1. धन्यवाद अरमान जी

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  9. Ek baar fir padhi aapki rachna khubsurat tareeke se prastut kiya aapne adbhutikaran....

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    1. धन्यवाद परी जी

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  10. प्रेरक और खुबसूरत रचना.....

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  11. नारी का महत्व बताती सुंदर रचना...

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    1. बहुत आभारी हूँ

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