सुन लो कान्हा मेरे कान्हा
मैं सखियों संग न जाऊंगी
मैं तुम संग दिन भर डोलूंगी
देखो कान्हा मेरे कान्हा
जब रास रचाई थी तुमने
मैं तन-मन भूल चुकी थी सच
तुम भोले-भाले चंचल से
मोहक चितवन, आमंत्रण से
मुरली मधुर बजा कान्हा
नित लीला नई दिखाते हो
मैं हुई प्रेम में दीवानी
तुम क्यों ना प्रीति लगाते हो
मैं वारी जाऊं तुम पर जो
तुम ज्यादा ही इतराते हो
मैं चोरी कर लूंगी तुमको
मटके में धर लूंगी तुमको
खोलूं मटका देखूं तुमको
इस मटके में रह जाओगे
मेरे कान्हा प्यारे कान्हा
देखो कान्हा, सुन लो कान्हा
सुन्दर पंक्तियाँ कान्हा-स्नेह की.
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसादर
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteविनम्र आभार राजीव जी
ReplyDeleteमनमोहक रचना,,,
ReplyDeleteधन्यवाद अरमान जी
Deleteसुन्दर , मनभावन भाव
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteजब रास रचाई थी तुमने
ReplyDeleteमैं तन-मन भूल चुकी थी सच
तुम भोले-भाले चंचल से
मोहक चितवन, आमंत्रण से
सुन्दर रचना
धन्यवाद अनुषा जी
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढ़िया रचना व प्रस्तुति , स्मिता जी धन्यवाद !
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धन्यवाद
Deleteकान्हा तो मन में हैं .. सुनाने की क्या जरूरत वो समझ जाते हैं भावों को ...
ReplyDeletesach kaha aapne
Deleteश्याम के रंग में रंगी सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार
Deleteसुंदर और भावमय अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteगहरे भाव....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteआभार संजय जी
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यश जी
Deletebahut hi bhaawpurn aur sunder sbhivyakti ............
ReplyDeleteधन्यवाद
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ReplyDeleteयही शाश्वत प्रेम है।
जय श्री राधे
जय श्री राधे
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