एक चमारों की बस्ती है
रहती हैं जहां मुनिया, राजदेई और जुगुरी
अपनी चहक से मिटाती हैं गरीबी का दंश
ये उन चमारों की बेटियां है
जिनके मजबूत हाथ और बलिष्ठ शरीर
जमींदारों के खेत में हरियाली बोते हैं
लोगों का पेट भरते हैं अन्नदाता हैं हमारे
भयानक ठंड और चिलचिलाती धूप में
ये लोग खेतों में गीत गाते हैं
अनाज के सैकड़ो बोरे पैदा करने के बदले
कई रातें फांका करके सोने को विवश हैं
फिर भी अपने कर्त्तव्य की तपिश में
भूखे पेट भी ठाकुरों की बेगारी करते हैं
उनके लठैतों और लाडलों का
आंखों में खौफ दिन-रात रहता है
पशुओं की चरी और बरसीम सिर पर लिए
हाथ में टांगे कंडियों की टोकरी
एक दिन अपनी धुन में चली आती थी मुनिया
आंखों में बाजरे से हरे सपने लिए
क्या पता था उस बालिका को
कोई भेड़िया है घात में
उसकी कोमलता को शापित करने को
किसी जानवर ने झपट्टा मारा था
दर्द से बिलबिलाती मुनिया की
तड़पती चीखें दबती गर्इं, थमती गर्इं
उसके विरोध से घायल भेड़िये के पंजों ने
मुनिया से जीने का हक भी छीन लिया
कल तक आंगन में फुदकती मुनिया
नि:शब्द हो गई, गहरी नींद सो गई
बाप की लाडली, मां की प्यारी बेटी
निर्मम दुनिया को अलविदा कह गई
मुनिया की लाश लिए खड़ा था बाप उसका
ठाकुरों के बेटे बन्दूक लहराते पहुंच आए थे बस्ती में
बोले दफन करो चमारों अपनी औलाद को
इस ‘सभ्य’ गांव में पुलिस नहीं आने पाए
कलेजे के टुकड़े को गोद में लिए
बाप की आंखें इंतजार में सूखी जा रही थीं
थाने में रपट लिखाए दिन बीत गया लेकिन
कोई ‘कानून का रखवाला’ बस्ती में नहीं पहुंचा
पता चला कि ‘हवेली’ में आज
शराब का दौर ‘साहब’ लोगों के लिए चल रहा है
इधर चमारों की पूरी बस्ती में
एक भी चूल्हा नहीं जल रहा है
तब उस मजबूर बाप ने अपनी मुनिया को
ढेलों के बीच एक गड्ढे में दफना दिया
और ठाकुरों के अय्याश लाडलों की
पंचायत में पेशी को चल दिया।
बहुत ही संवेदनशील रचना ... मार्मिक चित्रण है कडुवे सच का ...
ReplyDeletethank u so much naswa ji
Deleteक्या बात है,,,अद्भुत
ReplyDeleteधन्यवाद अरमान जी
Deleteबढ़िया लेखन , स्मिता जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
धन्यवाद आशीष जी
Deleteसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना मनमंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 21 . 7 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteमार्मिक भावाभिव्यिकि्त।।।
ReplyDeleteकटु सत्य को बयां करती रचना।।।
शुक्रिया अनुषा
Deleteविनम्र आभार
ReplyDeleteबहुत ही दयनीय, समाज को दर्पण दिखाती रचना |
ReplyDeleteकर्मफल |
आपका आभार
Deleteसमाज की विद्रूपता को दिखाती रचना.
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteसादर
मार्मिक..संवेदनशील रचना !
ReplyDeleteदुखद सत्य है. कब होगा ख़त्म यह!
ReplyDeleteसत्य कह रहे हैं आप. जाने कब हम हर किसी को इंसान समझ पाएंगे
Deleteआभार
आज तो सच को एकदम सटीक शब्द दे दिए आपने. एक एक पंक्ति बोलती सी.
ReplyDeleteबहुत ही पसंद आई ये रचना.
प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार संजय जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteहमारे आस-पास की हर 'मुनिया' की मौत के लिए हम सभी बराबर से जिम्मेदार हैं।
ReplyDeleteसादर
satya kah rhe hain aapn yash ji
Deletethank u
urf sach me dil ko chuti hui rachna...katu satya Smita ...
ReplyDeletethank u pari ji
Deleteकटु सत्य को शब्दों में बहुत अच्छा उकेरा है। पिताना जाने कितनी मुनियायें विवश हैं और उनसे बी ज्यादा विवश उनके माता पिता.
ReplyDeleteसत्य कहा आपने घोर विवशता है
Deleteसादर आभार आशा जी
बेहतरीन मार्मिकता से परिपूर्ण विषय को रचना के माध्यम से उखेरा है।
ReplyDeleteसुन्दर बहुत सुन्दर रचना।
प्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteसुंदर
ReplyDeleteआभार
Deleteबेहद मार्मिक...स्मिता सिंह जी ब्लॉग पर पधारे
ReplyDeleteRecent Post …..विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन -- कविता रावत :)
प्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteमुनिया की विवशता को शायद यह समाज समझ सके …
ReplyDeleteकई प्रश्न उठाती सार्थक रचना !
प्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक...
कृपया blog पर आयें.. http://thesrjblogs.blogspot.in/2014/10/blog-post_3.html?m=1
बहुत ही मार्मिक लेख लिखा आपने.... समाज की स्थिति ब्याँ कर दी।
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