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Monday 26 May 2014

कुएं का पानी


गांव की झोपड़ियों के बीच
एक कुएं का पानी हर मौसम में
सबकी प्यास बुझाता है
तृप्त चेहरे देख, विचित्र संतोष उसमें ‘जीवन’ भर देता है।

लगभग न दिखने वाले अस्तित्व में भी 
अपनी सूखती धमनियों से 
निचोड़ कर तमाम जलराशि
उस गांव की छोटी-छोटी बाल्टियों में भर देता है

कुएं की डाबरों में सिमटी जलराशि ने
जैसे कर लिया हो गठबंधन
धरती की अथाह जलराशि से
कि वो सूखकर भी खाली नहीं हुआ है

गांव के घरों की ढिबरी की रोशनी
नहींं पहुंचती उसके अंधेरे वर्तमान तक
लेकिन वह हर दिन सूखते हुए भी 
सींच रहा है सैकड़ों जीवन

कोई अभिलाषा शेष नहीं है
उम्मीद कोई पैदा नहीं होनी है अब
उसे मालूम है अपना अंजाम पर उससे पहले
वह निभा रहा है कर्त्तव्य  धरती पर ‘जीवन’ कहलाने का



10 comments:

  1. बहुत उम्दा

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    1. thank u so much anusha..i will try better

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  2. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना.......... शुभकामनायें ।

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  3. सादर आभार आपका यशवंत जी।

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  4. बहुत खूबसूरत रचना

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  5. मंत्रमुग्ध कर दिया आपकी रचनाओं ने। सुन्दर शैली और इतने ही सुन्दर शब्द चयन। और भावनाएं अविरल प्रवाह!

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    1. आस पास होने वाली घटनाये कुछ चित्रमं में उकेरती हैं तो उन्हें लिखने का प्रयास भर है ये सब रचनाये. सादर आभार आपका

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